सात्यकि
*सात्यकि*
द्वापर युग के ऐसे अजेय योद्धा थे जिनके सामने शत्रु सेना घुटने टेक देती थी, उस कालखंड के बड़े बड़े महारथी वसुदेव कृष्ण और बलभद्र के इस शिष्य के सामने झुक जाते थे, कदाचित प्रभु श्री कृष्ण और शेषावतार बलराम के अलावा सात्यकि ही द्वापर के ऐसे योद्धा थे जो अविजित रहे, सतयुग, त्रेतायुग व द्वापर में ईश्वरीय अवतारों के अलावा ये परम सौभाग्य सात्यकि को ही प्राप्त है, हमारी युग गाथाओं में सात्यकि का वर्णन उतना नहीं मिलता जिसके वे अधिकारी है अनुसंधान व आत्मसाक्षात्कार के वक्त इस महान महारथी की वीरता आपके रोंगटे खड़े कर देती है, शाल्व, शल्य, विरुपाक्ष, गंगापुत्र भीष्म, सूर्यपुत्र कर्ण, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, दुर्योधन, अलम्बुश जैसे योद्धाओं को परास्त करने वाले इस वीर की निष्ठा सिर्फ अपने प्रभु केशव और दाऊ के लिए थी। प्रभु श्री कृष्ण उनकी सारी दुनिया थे और उतना ही प्रेम और भरोसा कृष्ण को सात्यकि पर था। हां एक और शख्स था जो सात्यकि के दिल में रहता था वो था सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु। इस सत्य को कोई नहीं झुठला सकता कि अगर महाभारत में सात्यकि और अभिमन्यु ना लडे होते तो शायद इतिहास कुछ और ही होता। जानिए द्वापर के इस महान योद्धा को और करीब से, जल्द आ रही एक शानदार गाथा " सात्यकि द्वापर का अजेय योद्धा ".
लेखक : दुष्यंत प्रताप सिंह
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